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एसीबी के फंदे में जीपी सिंह… जहां के चीफ थे, वहां मुलजिम की तरह पहुंचे, दो दिन की रिमांड में रहेंगे

रायपुर। गुरजिंदर पाल सिंह। 1994 बैच के आईपीएस। अभी निलंबित। एसपी रहते हुए आईजी के बंगले से डकैती का माल बरामद करने का मसला हो या फर्जी नक्सलियों के आत्म समर्पण का या आईपीएस राहुल शर्मा की आत्महत्या का। विवादों के कारण जितनी चर्चा में रहे, उससे ज्यादा अपनी पुलिसिंग और सरकार की करीबी के कारण भी महकमे में प्रभावशाली रहे। कुछ महीने पहले जिस एंटी करप्शन-ईओडब्ल्यू दफ्तर के मुखिया थे, वहीं बुधवार को मुलजिम की तरह पहुंचे। एसीबी की टीम ने उन्हें मंगलवार शाम को गुड़गांव में पकड़ा और बाइरोड राजधानी पहुंचे। एसीबी मुख्यालय में दो घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट ले जाया गया। इससे पहले मीडिया से कहा कि उन्हें जबरदस्ती फंसाया जा रहा है।
कोर्ट में एसीबी ने 7 दिन रिमांड की मांग की तो जीपी सिंह ने विरोध किया। जीपी ने कहा कि पूछताछ हो चुकी है। उन्होंने पूरी मदद की है। रास्ते में भी जो जानकारी मांगी गई, उन्होंने दी है। एसीबी ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा कि कुछ जानकारी चाहिए। इस आधार पर 14 जनवरी तक की रिमांड दे दी। इससे पहले मीडिया से चर्चा करते हुए भी जीपी सिंह ने कहा कि उन्हें फंसाया गया है। आय से अधिक संपत्ति का जो मामला बताया जा रहा है, वह उनकी संपत्ति नहीं है, बल्कि उनके परिजनों की संपत्ति है। जीपी ने कहा कि केस फेब्रिकेटेड है।

तकनीकी के तगड़े जानकार, लेकिन अपनी पहचान छिपा नहीं सके

जीपी सिंह जब फील्ड में थे, तब उन्हें नई तकनीकी के जानकार अफसर के रूप में जाना जाता था। इसकी मदद से ही उन्होंने कई गंभीर किस्म के केस सुलझाए थे। ऐसे में एसीबी के अफसरों के सामने उन्हें पकड़ना बड़ी चुनौती थी। जीपी सिंह वाईफाई से कनेक्ट कर इंटरनेट कॉलिंग करते थे। जहां रहते थे, वहां जाने से पहले ही फोन बंद कर दिया करते थे। हालांकि तकनीकी की मदद से ही एसीबी ने उनके ठिकाने का पता लगा लिया। जब वे इवनिंग वॉक पर निकले, तब पकड़ लिया। इस दौरान जीपी ने बचने के लिए पुलिस पर किडनैपर होने का आरोप लगाया और बचाने के लिए चिल्लाने लगे। लोगों ने घेर लिया, तब एसीबी अफसरों ने अपनी पहचान बताई। एक डीएसपी, दो इंस्पेक्टर सहित दर्जनभर पुलिस टीम ने उन्हें पकड़ा।

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